हुआ क्या है?
हा? क्या पता, क्या हुआ!
एक वक़्त था, जब भारतीय सिनेमा दुनिया भर में उसके नैतिक्ता के लिए जानी जाती थी|
पर आज वह वक़्त, वह पल, ज़माने के उलझनों में कही खो सा गया है!
आश्चर्य होता है, जब टी.वी चालु करते ही अंग-भंग दर्शाती हुई नचनिया दिखाई पड़ती है!
हाँ! मानता हुं मैं ये के ज़माना बदल गया है, नर और नारी के बीच जो फासले बनाये गए थे वो सिमटने लगे है, किन्तु ये द्वारे कब खुलने लगे? रुपये कमाने का नया तरीका, अंगो का प्रतिनिधित्व करते हुए दस मर्दों के बीच अशलील हरक़तो को मध्य नज़र बनाते हुए नाचना! क्या आसान रास्ता अपनाया है इन औरतो ने| इनके निर्देशक ये समझते है के ऐसे विचारहीन एवं प्रतिभाहीन झरोके परवाने से लोगो वास्तविकता से दूर एक काल्पनिक दुनिया मैं खींच के लाया जा सकता है जो काम वासना से भर पूर्ण हो!
और इनसे इनके चाहने वाले भी बढ़ गए है, जो दिन मैं इनके प्रदर्शन देखे रात भर सपनो मैं इनके साए लिए फिरते है!
मनुष्य के नैतिक्ता पर इतना बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया है| लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं |
एक तरफ नारी संघठन वाले कहते है के नारी माँ होती है, बेहें होती है एवं जननी होती है| तो दूसरी तरफ, हमारे नौजवानों को इसे जल्वे भी देखने को मिलते है! एसे जल्वे जिन्हें देख कर केवल नर ही नहीं, बल्कि हमारी युवा पीढ़ी की नारी भी उत्साहित हो जाती है|
बस इतना लिखना ही काफी है, अब आप समझ ही गए होंगे, के मेरे कहने का क्या तात्पर्य है?
रोक लगाओ, इस अशलीलता पे| नहीं तो कम से कम, इस्पे कोई हद तो लगावो!
बस इतना ही कहना है|
बाकी तो आप देख ही रहे है! ;)
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